मानवअधिकार
मानवाधिकार मूलभूत अधिकार हे जिनका उपभोग करने के लिए प्रत्येक नागरिक अधिकृत है।
जीवन का अधिकार
शिक्षा का अधिकार
जीविकोपार्जन का अधिकार
वैचारिक स्वतंत्रता का अधिकार
समानता का अधिकार
धार्मिक स्वंतंत्रता अधिकार
ये मूलभूत अधिकार मानवधिकार अन्तगर्त आते है। विश्व के अधिकांश देश में अधिकार संविधान द्वारा नागरिको को प्रदत किए है। भारत में भी संविधान के अनुच्छेद 14 लेकर 35 के द्वारा नागरिको को विभिन्न अधिकार दिए गए है। 'एमनेस्टी इंटरनेशनल 'मानवाधिकार की रक्षा विश्व भर मे सुनिशिचत करने एक अंतरास्ट्रीय संस्था हे. जिसका मुख्यालय लन्दन में है।
वैसे तो मानव अधिकार की अवधारणा का इतिहास बहुत पुराना है, पर इसकी वर्तमान अवधारणा द्वितीय विश्वयुद्ध`के विध्वंस परिणामस्वरूप तब विकसित हुई जब सन 1948 में संयुक्त रास्ट्रे संघ की महासभा ने मानवाधिकारो के सार्वभौमिक घोषणा को स्वीकृत किया।
मानवाधिकारो का उल्लेख प्राचीन भारतीय ग्रन्थों जैसे 'मनुस्मृति 'हितोपदेश ,पंचतत्र ,तथा प्राचीन यूनानी दर्शन में भी मिलता है।
यघपि सन 1215 ई o में इंग्लेंड में जारी मैग्ना कार्टा में नागरिको के अधिकार का उल्लेख था ,पर उन अधिकारों को मानवाधिकार की संज्ञा नहीं दी जा सकती थी सन 1525 ई o में जर्मनी के किसानो द्वारा प्रशासन से माँगे गए अधिकारों की बारह धाराओं यूरोप में मानवाधिकार का प्रथम दस्तावेज कहा जा सकता है।
1789 ई o में फ्रांस की राष्ट्रीय सभा ने नागरिको के अधिकारों की घोषणा की जिसके फलस्वरूप विश्व में समानता ,उदारता एवं बंधुत्व के विचारो को बल मिला। 19वीं शताब्दी में ब्रिटेन एवं अमेरिका में दास -प्रथा की समाप्ति के लिए कई कानून बने और 20 वीं शताब्दी आते -आते मानवाधिकारों को लेकर कई विश्व्यापी सामाजिक परिवर्तन हुए जिसके अन्तगर्त बाल -श्रम का विरोध प्रारम्भ हुआ। एवं विभिन्न देशों में महिलाओं को चुनाव में मतदान का अधिकार मिला। सन 1864 में हुए जेनेवा समझौता से अंतराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार की मान्यता की बात की गई।
10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा को स्वीकृत किया। इसकी प्रस्तावना में कहा गया है। अतः कानून द्वारा नियम बनाकर मानव अधिकार की रक्षा करना अनिवार्य है।
इसके प्रथम अनुच्छेद में स्पष्ट उल्लेख है की सभी मनुष्ये को गौरव और अधिकारों के मामले में जन्मदाता स्वतंत्रता और समानता प्राप्त है।
अनुच्छेद 2 में कहा गए है कि प्रत्येक व्यक्ति को जाति ,लिंग ,भाषा ,धर्म ,राजनीति या अन्य विचार -प्रणाली , किसी देश या समाज विशेष में जन्म ,सम्पति या किसी प्रकार की मर्यादा आदि के कारण भेदभाव नहीं किया जाएगा.
अनुच्छेद 3 में कहा है की प्रत्येक व्यक्ति को जीवन ,स्वाधिनता और वैयक्ति सुरक्षा का अधिकार है।
अनुच्छेद 4 में है की कोई भी गुलामी या दासता की हालत में नहीं रखा जाएगा ,गुलामी -प्रथा और गुलामों का व्यापर सभी रूपों में निषिद्ध होगा।
अनुच्छेद 5 में है की किसी को न तो शारीरिक यातना दी जाएगी न ही किसी के प्रति निर्दय ,अमानुषिक या अपमानजनक व्यवहार अपनाया जाएगा।
ऐसे ही कई आवशयक एवं महत्वपूर्ण मानवधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा इसके कुल 30 अनुच्छेद में की है
भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन 23 सितम्बर ,1993 में किया गया। इस समय न्यामूर्ति के जी बालकृष्णन इसके अध्यक्ष है।
जनतंत्र की अवधारणा मानवाधिकारो को सुनिश्चित करने की बढ़ती हुई है। इसके बिना एक व्यक्ति के लिए न तो व्यक्तित्व का विकास संभव और न ही सुखी जीवन व्यतीत कर पाना। मानव अधिकार के आभाव में जनतंत्र की कल्पना निरथर्क है।
अन्तर्राष्ट्र्ये संगठन 'ह्यूमन राइट्स वॉच 'की 175 देशो में मानवाधिकारो की स्थिति का जायजा लेने वाली एक रिपोर्ट में भारत के बारे में कहा गया है की यहाँ महिलाएं ,बच्चों ,आदिवासियों के मानवाधिकारो से जुडी समस्याएँ ज्यादा है। मानवाधिकारो कार्येकर्ताओ का कहना है की इसका मूल कारण सभी राज्यों में मानवाधिकार आयोग का न होना है।
अतः भारत में मानवाधिकारो की रक्षा सुनिश्चित करना के लिए इसके सभी राज्यों में मानवाधिकार आयोग का गठन अनिवार्य है। क्योकि मानव परिवारों के सभी सदस्यों के जन्मदाता गौरव और सम्मान तथा अविच्छिन्न अधिकार की स्वीकृति ही विश्व -शांति , न्याय और स्वतंत्रता की बुनियाद है। अतः सम्पूर्ण मानवता की रक्षा के लिए विश्व समुदाय को मानवाधिकार की रक्षा करनी चहिए।


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